Monday, May 25, 2020

ALLAHABAD HIGH COURT LEADS THE WAY

Allahabad High Court has always supported open source software and has led judiciary in the field of computerisation, to be followed by the E-committee and other courts. 
Allahabad High Court has adopted an open source software for argument of cases by video conferencing in contrast to other courts that have adopted proprietary and closed source software.
This post explains why they should change and follow the Allahabad example.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय कि वेसाइट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हमेशा ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर का समर्थन किया है और कम्प्यूटरीकरण के क्षेत्र में न्यायपालिका का नेतृत्व किया है। जिसे बाद में, ई-समिति और अन्य न्यायलयों के द्वारा  अनुसरित किया गया। 
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बहस के लिए, जहां अन्य अदालतों ने, मालिकाना और क्लोस़ड सोर्स  सॉफ्टवेयर का चयन किया  है, वहीं इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर का चयन किया है। यह निर्णय अन्य अदालतों के निर्णय से बेहतर है। 
यह पोस्ट बताती है कि अन्य अदालतें को क्यों अपने निर्णय बदल कर,  इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उदाहरण को अपनाना चाहिये। 

I was elevated as a judge of the Allahabad High Court on 5th February 1999. The Court was already computerised at that time but they were on Windows. However, there were more computers than the Window licences. The reasoning was that at any given time, there were far less users than the number of licences. This was wrong. In fact, there should have been as many licenses as there were computers. 

At the beginning of this century, Allahabad High Court had to purchase more computers, as the old ones were retired. This time, computers were purchased with Linux as operating system. The Court got over problem of having licenses for every computer. This was the first time any court in India or any where in the world used Linux computers.

The experience with Linux desktop was so good that the Allahabad High Court took a policy decision to work in Open Source software and Open Format only. This was also first for any court in the World.

Soon, the Allahabad High Court decided to have its own web server in 2004. It was taken on Linux server. It took about four weeks to set up, but it was worth the trouble. This was again first for any court in the world. Today, some other courts have also set up their servers. 

In the first decade of the century, E-committee started computerising district courts. They offered to send Window based computers in UP. This was declined on the ground that the Allahabad High Court would accept computers on open source software only. The Court was threatened that the district courts in UP would not be computerised. The Court replied that it preferred to remain uncomputerised rather than to change its policy. Later, E-committee sent Linux based computers.

Soon, E-committee realised importance of Open Source Software and accepted the policy decision of the Allahabad High Court and followed its way. They have started working  with Ubuntu, one of the flavours of Linux that is reputed to be user friendly. All courts in India are now using Ubuntu.

The website of the Allahabad High Court is the first website in the world to provide RSS feed not only for its approved for reporting (AFR) judgements but also for its administrative orders. It has led the courts in India, regarding digitisation of its records.

Covid-19 has brought new challenges for judiciary. Almost every court has started hearing cases by video conferencing. There are many video conferencing software and different courts are using different ones: some are using Cisco telepresence systems; some are using Skype some are using Vidyo; and mostly had started with Zoom. It is a mistake to use them.

These software are proprietary software and their source code is closed. No independent person can  review their source code and make sure of their claims. Security breaches can happen, as they have happened in Zoom.  Here are the reasons for the breach and some other stable software.

Allahabad High court has not chosen ‘Vidyo’ or any proprietary software but true to its policy has chosen ‘Jitsi’, an open source software. Here are some details about it. It took more time to set-up than taken in the other courts but the experience of the lawyers is better. It may not have as many features as proprietary software but is technically on sounder footing.

Jitsi being open source, no royalty or license fee is required to be paid. The money may be charged for services. All courts have computer experts; NIC is also there to set up the system: in such situation, it is cheaper option as well.

NIC has preferred Vidyo and this is also implemented in the Supreme Court. NIC manages most of the High Courts and sooner or later, it will advise other High Courts to use it and they will blindly accept it, as the Supreme Court is using it. Apart from the fact that Vidyo is a proprietary software, promoted by an American company, known as Vidyo Incorporated, the experience of the lawyers in the Supreme Court is unsatisfactory. There is demand to abolish it. 

Supreme Court will do well to revise its decision and follow the example of the Allahabad High Court. It should shift over to open source software.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रास्ता दिखाया

मैंने, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की शपथ, ५ फरवरी, १९९९ को ली थी। उस समय उच्च न्यायालय, पहले से ही कम्प्यूटरीकृत था। लेकिन सारे कम्प्यूटर विंडोज़ पर थे। हालांकि, कम्प्यूटरों की संख्या, विंडोज़ लाइसेंसों  की तुलना में, अधिक थी। इसके लिये यह तर्क दिया जाता था कि सारे कम्प्यूटर एक साथ नहीं चलते है।  किसी भी समय, जितने विंडोज़ के लाइसेंस हैं, उनसे कम ही कम्प्यूटर खुले होते हैं। यह तर्क गलत था। वास्तव में, जितने कम्प्यूटर हों, उतने लाइसेंस भी होने चाहिए थे।

इस सदी की शुरुआत में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय को कम्प्यूटर खरीदने पड़े, क्योंकि पुराने कम्प्यूटर ने काम करना बंद कर दिया था। इस बार, सारे कम्प्यूटरों को, लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ खरीदा गया था। कोर्ट के पास हर कम्प्यूटर के लिये लाइसेंस होने की झंझट समाप्त हो गयी। यह पहली बार था कि संसार की किसी अदालत में  लिनक्स कम्प्यूटर का इस्तेमाल किया गया।

लिनक्स कम्प्यूटरों के साथ अनुभव इतना अच्छा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर और ओपन फॉर्मेट में ही काम करने का नीतिगत निर्णय लिया। यह भी दुनिया में किसी भी अदालत के लिए पहली बार था।

जल्द ही, २००४ में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपना स्वयं का वेब सर्वर स्थापित किया। यह लिनक्स पर ही स्थापित किया गया। इसे शुरू करने में मुश्किल पड़ी और लगभग चार सप्ताह की देरी हुई। लेकिन यह जायज़ था।  यह भी दुनिया की किसी भी अदालत के लिए पहली बार हुआ। इसके कई साल बाद, अन्य अदालतों को लगा कि अपना सर्वर रहना बेहतर है तो कइयों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की देखा-देखी, अपना सर्वर स्थापित कर लिया।

शताब्दी के पहले दशक में, ई-समिति ने जिला अदालतों का कंप्यूटरीकरण शुरू किया। उन्होंने यूपी में विंडो आधारित कम्प्यूटर भेजने की पेशकश की। इसे, इस आधार पर मना कर दिया गया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय केवल ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर पर कम्प्यूटरों को स्वीकार करेगा। कोर्ट को धमकी दी गई कि यूपी में जिला अदालतों को कंप्यूटरीकृत नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने जवाब दिया कि उसने अपनी नीति बदलने के बजाय गैर-कंप्यूटरीकृत रहना पसंद करेगा। बाद में, ई-समिति ने लिनक्स आधारित कम्प्यूटर भेजे।

जल्द ही, ई-समिति ने ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के महत्व को महसूस किया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के नीतिगत निर्णय को स्वीकार कर ओपेन सोर्स आधारित कम्प्यूटर पर काम करना शुरू किया। उन्होंने उबंटू को अपनाया। यह  लिनक्स का वह रंग है जिसको प्रयोग करना, उपभोक्ता के लिये सबसे आसान कहा जाता है। अपने देश में अब, सब अदालतें, उबंटू का प्रयोग कर रही हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की वेबसाइट दुनिया में अदालतों की पहली वेबसाइट है, जो न केवल अपने एएफआर (अपरूवड फॉर रिपोर्टिंग) फैसलों के लिए पर प्रशासनिक आदेशों के लिए भी, आरएसएस फीड प्रदान करती है। इसने अदालतों रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण के बारे में भी रास्ता दिखाया।

कोविद-१९, न्यायपालिका के लिए नई चुनौतियां लेकर आया है। लगभग सब अदालतों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा मामलों की सुनवाई शुरू कर दी है। कई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयर हैं और विभिन्न अदालतें अलग-अलग सॉफ़्टवेयरों का प्रयोग कर रही हैं: कुछ सिस्को टेलीप्रेज़ेन्स सिस्टम (Cisco telepresence systems) का; कुछ स्काइप (Skype) का; कुछ विडयो (Vidyo) का उपयोग कर रहे हैं; और ज्यादातर ज़ूम (Zoom) के साथ शुरू हुआ था। उनका उपयोग करना एक गलती है।

ये सब न केवल मालिकाना सॉफ्टवेयर हैं पर इनका सोर्स कोड छिपा है। इस कारण कोई भी स्वतंत्र व्यक्ति, न तो इनके  सोर्स कोड की समीक्षा कर सकता है और न ही इनके दावों की पुष्टि कर सकता है। इन सब में, सुरक्षा उल्लंघन हो सकता है, जैसा कि ज़ूम में हुआ है। यहां इसी के बारे में चर्चा है और कुछ स्थायी  सॉफ्टवेयर की चर्चा है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विडयो या अन्य किसी भी मालिकाना सॉफ्टवेयर का चयन नहीं किया। उसने अपनी नीति के अनुकूल, ‘जित्सी’ (Jitsi), ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर चुना है। इसके बारे में यहां कुछ विस्तार से है। अन्य अदालतों की तुलना में, इसे स्थापित करने में अधिक समय लगा, लेकिन इलाहाबाद में वकीलों का अनुभव बेहतर है। जित्सी में मालिकाना सॉफ्टवेयर की कुछ विशेषताएं नहीं हो सकती हैं, लेकिन यह तकनीकी रूप बेहतर नीव पर आधारित है।

जित्सी ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर है। इस कारण, किसी भी रॉयल्टी या लाइसेंस शुल्क के भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। सेवाओं के लिए पैसा लिया जा सकता है। सभी अदालतों में कंप्यूटर विशेषज्ञ हैं; सिस्टम स्थापित करने के लिए एनआईसी भी है: ऐसी स्थिति में, यह सस्ता विकल्प भी है।

एनआईसी (NIC) ने विडयो को प्राथमिकता दी है और इसे सुप्रीम कोर्ट में भी लागू किया गया है। एनआईसी अधिकांश उच्च न्यायालयों में भी कम्प्यूटरों और उनकी वेबसाइटों का प्रबंधन करता है और जल्दी या बाद में, यह अन्य उच्च न्यायालयों को, विडयो का उपयोग करने की सलाह देगा और वे इसे आंखें बंद कर स्वीकार कर लेगें। वे भी वही करेंगे, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय कर रहा है।

विडयो, एक अमेरिकी कंपनी का सॉफ्टवेयर है। इसका सॉफ्टवेयर न केवल मालिकाना है, छिपा हुआ है पर सुप्रीम कोर्ट में वकीलों का अनुभव असंतोषजनक है। इसे समाप्त करने की मांग की जा रही है। 

सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर पुनः सोचना चाहिए। उन्हें भी, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तरह, ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर का चयन करना चाहिये।

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