This is second of the three part series on 'Privacy'. It is based on the written submissions submitted by the author before the Supreme Court.
In the first part, we had discussed historical perspective of Privacy. In this second part, we take a look, why Privacy is part of Article 21 of the Constitution of India.
'निजता' के ऊपर, तीन कड़ियों में प्रकाशित हो रही श्रंखला की यह दूसरी कड़ी है। यह लेखक के द्वारा, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दी गयी लिखित बहस पर आधारित हैं।
Jawahar Lal Nehru signing Indian Constitution - picture courtesy Wikipedia |
'निजता' के ऊपर, तीन कड़ियों में प्रकाशित हो रही श्रंखला की यह दूसरी कड़ी है। यह लेखक के द्वारा, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दी गयी लिखित बहस पर आधारित हैं।
इसकी पहली कड़ी में, हमने
निजता के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
पर चर्चा की थी। इसके दूसरे
भाग में, हम चर्चा कर रहे हैं कि निजता किस प्रकार से भारत के संविधान के अनुच्छेद २१ का हिस्सा है।
There is no specific mention of right to privacy in our constitution but its different facets are within the fundamental rights and it is part of the words 'life or personal liberty' in Article 21.
Human rights are defined in the Protection of Human Rights Act 1993 (the Human Rights Act). Apart from others, it includes rights relating to life and liberty, embodied in the International Covenant on Civil and Political Rights that are enforceable in court.
Privacy relates to life and liberty. In the previous part we have seen as to how the US Supreme Court has held right to life to include, right to be let alone that is nothing but privacy. Privacy is embodied in International Covenant on Civil and Political Rights under article 17. It is enforceable in court—at least under the common law. It is a human right and it is unthinkable that the human rights are not covered by Article 21.
India is a party and has ratified the following four International conventions/ treaties:
- Universal Declaration of Human Rights;
- International Covenant on Civil and Political Rights;
- United Nations Convention on the Rights of the Child;
- United Nations Convention on the Rights of Persons with Disabilities.
The conventions and the treaties are not binding unless they are adopted by the legislation and in case of contradiction, the law of the land prevails. However, in light of Article 51, Supreme Court has taken consistent view that their help can be taken while interpreting the Constitution or any statute or for removing any ambiguity; they are the guiding principles (See End Note-1). This is also accepted proposition in other countries. (See End Note-2)
In case Article 21 is interpreted in the light of conventions/ treaties then privacy is part of the words 'life or personal liberty'. It is constitutionally protected.
In its initial years, Supreme Court made some casual observations in two cases (See End Note-3) that right to privacy is neither a specifically mentioned fundamental right nor it is necessary to import it in Article 21. But for last more than 40 years, in about dozen cases, it has consistently maintained that privacy is part of Article 21. (See End Note-4)
It is too late a day to say that privacy is not constitutionally protected but the debate should be—regarding its parameters, its contours; when and how should it be curtailed.
हमारे संविधान में निजता के अधिकार का कोई विशेष उल्लेख नहीं है। लेकिन इसके विभिन्न पहलु, मौलिक अधिकारों में समाये हैं और यह अनुच्छेद 21 में लिखे शब्द 'जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता' का हिस्सा है।
मानव अधिकारों को, मानव अधिकार अधिनियम १९९३ (मानव अधिकार अधिनियम) में परिभाषित किया गया है। अन्य अधिकारों के अलावा, इसमें जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित वे अधिकार शामिल हैं, जो कि इन्टरनेशनल कवनेन्ट ऑफ सिविल एण्ड पोलिटिकल राइटस में समाहित हैं और न्यायालय के द्वारा लागू किये जा सकते हैं।
निजता, जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित है। पिछली कड़ी में हमने देखा कि किस प्रकार से अमेरिकन सुप्रीम कोर्ट ने अकेले रहने के अधिकार (जो कि कुछ और नहीं पर निजता है) को जीवन के अधिकार से जोड़ा। यह उपर लिखे अंतरराष्ट्रीय करार के अनुच्छेद १७ के अन्तर्गत आता है और इसे कम से कम, कॉमन लॉ के अन्दर न्यायालय में लागू किया जा सकता है। इसलिये निजता, मानव अधिकार अधिनियम के तहत, एक मानवीय अधिकार है। यह कहना कि मानव अधिकार, अनुच्छेद २१ के अन्दर नहीं आते हैं, बेवकूफी होगी।
भारत निम्नलिखित चार अंतर्राष्ट्रीय करारों/ संधियों में पक्ष है और उसने इनकी पुष्टि भी की है:
- युनिवर्सल डिक्लरेशन ऑफ ह्यूमन राइटस;
- इन्टरनेशनल कवनेन्ट ऑफ सिविल एण्ड पोलिटिकल राइटस;
- युनाइटेड नेशनस कन्वेनशन ऑन द राइटस ऑफ चाइल्ड;
- युनाइटेड नेशनस कन्वेनशन ऑन द राइटस।ऑफ द परसनस विथ डिसएबिलिटी।
अंतर्राष्ट्रीय करार एवं संधियां तब तक बाध्य नहीं हैं जब तक कि वे कानून द्वारा न अपनाए जायें। लेकिन, भारतीय संविधान के अनुच्छेद ५१ की व्याख्या करते समय, सर्वोच्च न्यायालय ने लगातार अपना मत दिया है कि संविधान या किसी भी क़ानून की व्याख्या करते समय उनकी मदद की जा सकती है या किसी अस्पष्टता को हटाने के लिए; वे मार्गदर्शक सिद्धांत हैं (देखें अंत नोट-१)। यही कानून अन्य देशों में भी प्रचलित है (देखें अंत नोट-२)।
यदि अनुच्छेद २१ की व्याख्या, अंतर्राष्ट्रीय करार/ संधियों के प्रकाश में की जाय, तो निःसन्देह निजता इसमें प्रयुक्त शब्दों 'जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता' का हिस्सा है। निजता संवैधानिक रूप से अनुच्छेद २१ संरक्षित है।
अपने शुरुआती वर्षों में, सुप्रीम कोर्ट ने दो मामलों में कुछ आकस्मिक टिप्पणियों (देखें अंत नोट-३) इस प्रकार की कीं, कि संविधान में, निजता का अधिकार न तो एक विशेष रूप से उल्लखित किया गया है और न ही इसे अनुच्छेद २१ में पढ़ा जाना आवश्यक है। लेकिन पिछले 40 वर्षों से करीब एक दर्जन से अधिक मामलों में, यह लगातार कहा गया है कि निजता अनुच्छेद २१ का हिस्सा है (देखें अंत नोट-४)
यह कहने के लिये बहुत देर हो चुकी है कि निजता संविधान में संरक्षित नहीं है। लेकिन बहस इस पर होनी चाहिये कि इसकी सीमा क्या है, इसका दायरा क्या है; इसे कब और कैसे, छांटा या कम किया जा सकता है।
End Note-1: PUCL vs UOI AIR 1997 SC 1203: (1997) 3 SCC 433; National Legal Services Authority vs UOI, AIR 2014 SC 1863: (2014) 5 SCC 438: (2014) 3 CTC 46: (2014) 2 378; Kapila Hingorani vs State of Bihar (2003) 6 SCC1: 2003 Supp (1) SCR 175; Apparel Export Promotion Council vs AK Chopra, AIR 1999 SC 625: (1999) 1 SCC 759; Githa Hariharan vs Reserve Bank of India AIR 1999 SC 1149: (1999) 2 SCC 228; DK Basu vs State of West Bangal (1997) 1 SCC 416: AIR 1997 SC 610; Peoples' Union for Civil Liberties vs UOI AIR 1997 SC 568: (1997) 1 SCC 301; Vishaka vs State of Rajasthan, AIR 1997 SC 3011: (1997) 6 SCC 241; Nilabati Behera vs State of Orissa, (1993) 2 SCC 746: AIR 1993 SC 1960; Jolly George Vargheese vs Bank of Cochin AIR 1980 SC 470: ( 1980) 2 SCC 360; Ali Akbar vs UAR AIR 1966 SC 230 : (230): (1966) 1 SCR 319.
End Note-2: R vs Ewanchuk (1999) 1 SCR 330 (Canada); Kartinyeri vs Commonwealth, (1998) 152 ALR 540 (Australia); Unity Dow vs Attorney General of Botswana (1992) LRC (Const) 623; Ephrahim vs Pastory (1990) LRC (Const) 750 (Tanzania); Minister of Home Affairs vs Fisher (1980) AC319: (1979) 2 WLR 889: (1979) 3 All ER 21 (PC).
End Note-3: MP Sharma vs Satish Chandra, District Magistrate, Delhi 1954 SCR 1077 = AIR 1954 SC 300: Kharak Singh vs State of UP 1964 (1) SCR 332 = AIR 1963 SC 1295.
End Note-4: Govind vs State of MP, (1975) 2 SCC 148: AIR 1975 SC 1378: (1975) 3 SCR 946; Ramlila Maidam Incident vs Home Secretary UOI (2012) 2 SCALE 682; Ram Jethmalani vs UOI (2011) 8 SCC 1: (2011) 6 SCALE 691; Selvi vs State of Karnataka AIR 2010 SC 1974: (2010) 7 SCC 263; Sharda vs Dharmpal, AIR 2003 SC 3450: (2003) 4 SCC 399; Mr X vs Hospital Z AIR 1999 SC 495 : (2000) 9 SCC 439; 'X' vs Hospital 'Z', (1998) 8 SCC 296 : AIR 1999 SC 2363; People's Union for Civil Liberties vs Union of India, (1997) 1 SCC 301: AIR 1997 SC 568; R Rajagopal vs State of TN (1994) 6 SCC 632: AIR 1995 SC 264; State of Maharashtra vs Madhukar Narayan Mardikar AIR 1991 SC 207: (1991) 1 SCC 57; Malak Singh vs State of P&H AIR 1981 SC 760 :(1981) 1 SCC 420.
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