At the end of my judicial career, I was a frustrated; unhappy about my decision in late 1990's for accepting judgeship: teaching 'Information Technology and Intellectual Property Rights for a semester in the Allahabad University did not elevate my spirits.
But joining back the legal profession, starting practice in the Supreme Court reinvigorated me. I met lawyers who had argued their cases in my court, clients whose cases I dealt with. This gave fulfilment and new meaning. Life often throws surprises in unexpected ways. Here is one of them.
न्यायाधीश का कार्यकाल समाप्त करते समय, मैं अपने अन्दर टूूट चुका था; नाखुश था अपने उस निर्णय से कि मैं न्यायाधीश क्यों बना: इलाहाबाद विश्वविदयालय में एक सेमेस्टर 'सुचना प्रौद्योगिकी और बौद्धिक सम्पदा अधिकार' कानून पढ़ाने के बाद भी कुछ नहीं बदला।लेकिन सुप्रीम कोर्ट में, वकालत शुरू करने से सब बदल गया। उन वकीलों से मिलना, जिन्होंने मेरे सामने बहस की, उन मुव्वकिलों से टकराना, जिनके मुकदमें किये - इसने जीवन में नये रंग भरे, लगा जीवन बेकार नहीं हुआ। हर मोड़ पर ज़िन्दगी, नये गुल खिलाती है। उन्ही खुशनुमा अनुभवों में से एक।
But joining back the legal profession, starting practice in the Supreme Court reinvigorated me. I met lawyers who had argued their cases in my court, clients whose cases I dealt with. This gave fulfilment and new meaning. Life often throws surprises in unexpected ways. Here is one of them.
न्यायाधीश का कार्यकाल समाप्त करते समय, मैं अपने अन्दर टूूट चुका था; नाखुश था अपने उस निर्णय से कि मैं न्यायाधीश क्यों बना: इलाहाबाद विश्वविदयालय में एक सेमेस्टर 'सुचना प्रौद्योगिकी और बौद्धिक सम्पदा अधिकार' कानून पढ़ाने के बाद भी कुछ नहीं बदला।लेकिन सुप्रीम कोर्ट में, वकालत शुरू करने से सब बदल गया। उन वकीलों से मिलना, जिन्होंने मेरे सामने बहस की, उन मुव्वकिलों से टकराना, जिनके मुकदमें किये - इसने जीवन में नये रंग भरे, लगा जीवन बेकार नहीं हुआ। हर मोड़ पर ज़िन्दगी, नये गुल खिलाती है। उन्ही खुशनुमा अनुभवों में से एक।
Picutre courtesy - SASTRA University Thanjavur |